बुधवार, 10 मार्च 2010

बेटा

******************
एकदम सफेद
कांच सी चमकीली
पारदर्शी
शुभ्रता को संजोए
यह पर्वत है या महापुरुष / महा तपस्वी ?
हाड़ कंपाती ठण्ड में
बर्फ का ओवरकोट पहने
रोक कर अपनी सांसे
थाम लेता है हवाओं को / बादलों को
मां के लिये
करता है त्याग
तापमान का पारा
जब नीचे हो जाता है शून्य से भी
तब
रुक जाता है शहर
थम जाता है शोर
बंद हो जाते हैं कार्यालय
सब के सब ।
वह
खड़ा है ठसे
हवाओं को रोकते
बारिश की बौछारों को सहते हुए
अपनी सम्पूर्ण जिजीविषा
तमाम चेतना
और संवेदना के साथ
मां के लिये।
गर्व है मां को
हिमालय पर
चाहती है मां
सबके बेटे हो
हिमालय सरीखे
जैसा हिमालय मेरा।

********************

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें