सोमवार, 22 मार्च 2010

प्रेम की इबारतें

****************************
मेरे शहर की
हर सड़क
खुदी हुई है
दूर-दूर तक
पैरों की आहट से
पलकों के छोर तक
लम्बी, अनन्त
और जीवन्तता की सहचरी
सद्भावना की संगिनी
स्नेह और ममत्व में डूबी
मां की लम्बी-लम्बी मीठी बातों सी
प्रेम की इबारतें
बांचता है हर एक की भावना
चलता, भगता या दौड़ता
कोई पथगामी
छोड़ता है धीरे से
अपनी निःश्वास
अधरों के कम्पन से उच्चारित
कुछ अस्पष्ट सी वेदना
सांसों की गर्मी
और अनुभूतिजन्य आवेग
झील से उठती
मौन लहरों की
बिखरी सी परिभाषा है।
इबारतों के हिज्जे
अब इमारतों की छाया
रहते हैं मूक
ताकते हैं कातर
दर्प से सना
यह रक्तिम हृदय
कुछ कह देगा कभी...
मत कहना इसे
व्यक्तित्व का अतिक्रमण
चौपायों की कुचलाहट
या
पश्चिम की कैमरा दृष्टि
बदल देगी परिभाषाएं
तार-तार हो जाएंगी सड़कें
और
मानस के अंतिम अंतर्द्वन्द्व तक
उठती और गिरती रहेगी
किंकर्तव्यविमूढ़ता की
सैंकड़ों आवृत्तियां
और उसका वेग
नाप या माप नहीं पाएगा
तुम्हारा कोई यंत्र
चीख कर
झुंझलाओगे तुम स्वयं ही पर
मगर खोज नहीं पाओगे
सड़कों की भग्न काया पर
प्रेम की इबारतों के चंद हिज्जे
और
तुम्हारी कल्पना से भी
बाहर हो जाएगी
झील की लहरें
और उसकी निःश्वासित मौन परिभाषाएं।


****************************

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें