बुधवार, 31 मार्च 2010

मेरे लिए तुम

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समन्दर की एक लहर हो
मेरे लिए तुम ।
जो बहुत ऊपर उठकर
नीचे आते हुए
मुझे अन्दर तक भिगो जाती है।
मेरे लिए तुम
'बेड स्विच' से जुड़ी बहुत छोटी ट्यूब लाइट हो
जिसकी दूधिया रोशनी में
मैं देर रात तक पढ़ता रहता हूं खुद को।
तुम गंगाजल की अंजुरि भर बूंदें हो मेरे लिए
जिन्हें गटक कर मैं स्वयं को पवित्र करता हूं
तुम मेरे लिए हो मुट्ठी भर उजास
जिसे मैंने हथेली पर रख
अंगुलियों से ढक दिया है
और इसी उजास की प्यास
निरन्तर बनी हुई है मेरे लिए।
तुम मेरे लिए हो आंसू का एक कतरा
जो बेहद मुश्किल से निकलता है
ठीक उस शब्द की तरह जो
तुम्हारे लिए
मेरा प्रेम अभिव्यक्त करता है।
बस इसीलिए तुम "तुम" हो
जिसमें मेरा 'मैं' समा गया है।


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