सोमवार, 8 मार्च 2010

घर

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गुलाबी चौकों से चढ़कर
झालरदार फूलों का
स्नेह भरा स्वागत
चौखट कमरों में
सहजता की सरिता
आंगन की क्यारी में
चमेली और रातरानी की खुशबू
मेरे लिए घर की कल्पना है ।
घर की कोई परिभाषा नहीं होती
घर एक शब्द कोश है
जिसमें हर शब्द
का सौंदर्य है।
घर संजोता है कल्पना
लहलहाता खेत
घर के ठीक सामने
दूर तक फैला हुआ
हरियाली का वैभव
मन को भी हरा करता है।
गेहूं की गठीली बालियां
सरसों का पीताम्बर
और मूंगफली की महक
संजीवनी है।
बड़े सबेरे आंगन में आकर
पसर जाती है एक टुकड़ा धूप
छत जिसमें समाया है
एक टुकड़ा आसमान
झोली भर खुशियां लुटाता
गाता गुनगुनाता
हर उस क्षण का साक्षी है
जिससे घर बनता है
जानती है हवा
कि धूप और आसमान की तरह
घर भी
कभी इतिहास नहीं हो सकता।


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