सोमवार, 8 मार्च 2010

समस्या

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हथेली खुजाते-खुजाते
यूं ही शाम हो गयी
मेरी समस्या
आज फिर आम हो गयी
आंखों में सपनों की 'फाइल'
दिल में आकांक्षाओं की स्याही
मेरी संवेदनाएं
पंसेरी की उधारी से ब्याही
जेब हल्की है
आज तो शांत है भूख
सोच कल की है।
महंगाई के चौराहे पर
मेरी भावनाएं
आज फिर नीलाम हो गयीं ।

अब नहीं रहा
वह समय
जब सिर्फ
भावनाओं से भर जाता था पेट
अब बहुत ऊंची है
हर 'रेट'
बड़ों के लिए यह समस्या
बहुत है छोटी
मगर मेरे लिये तो सबसे बड़ी है रोटी ।

डिब्बे हैं खाली
बेरोजगार है थाली
फुटपाथ से उठकर
आज भूख
फिर मेरे नाम हो गयी ।

इन डिग्रियों का बोझ
कब तक उठाऊंगा मैं
नौकरी के गीत
जाने कब तक गाऊंगा मैं
विचार ठहर गए हैं
सब के सब
काम ढूंढने शहर गए हैं
सारी बातें अब अटपटी हो गयी
जब से
खुशबू रोटी की चटपटी हो गयी ।

सोचा था
अपने प्रयासों से
बदल दूंगा दुनिया
उठ जाऊंगा आसमां से ऊंचा।
मन के हर कोने पर
छा रही उदासी है
उद्देश्यों की श्रृंखला में
अब शामिल चपरासी है
भोर से पहले
बस्ते लादे
सब बच्चे कहां जा रहे हैं ?
मेरी विद्या आज फिर
बदनाम हो गई।

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