बुधवार, 31 मार्च 2010

सूरजमुखी की कविता : बरगद के लिए

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बरगद के नीचे
कुछ भी नहीं पनपता
या कि बरगद अपने नीचे
किसी को पनपने नहीं देता
प्रयोग के तौर पर
रख दिया बरगद के नीचे
सूरजमुखी लगा एक छोटा सा गमला
वाकई बरगद फुफकार उठा
अपने सान्निध्य में
किसी को पनपते देख
और उसने रोक दी
उसकी धूप
हवा
पानी
और खिलने का उत्साह।
बरगद ने रोक दी सूरजमुखी की पहचान
रोक दी उस तक आने वाली
हर नजर को ।
पहले से सूरजमुखी का बरगद से
अधिक परिचय नहीं था
बस जानते भर थे एक दूजे को
पर उसके नीचे आते ही उसे
पता चला कि
दूर से दिखने वाली विशालता
अंदर से कितनी बौनी है
सूरजमुखी ने देखा
कई कंटीली झाड़ियों को
बरगद के नीचे बिल्कुल हरी भरी ।
बरगद को इनसे
कोई शिकायत नहीं थी
सूरजमुखी के गमले की मिट्टी
काफी गीली है
हवा चुरा लेता है थोड़ी-थोड़ी
और मन में फैली
आत्मविश्वास की धूप से
गुजर जाएगा प्रत्येक ग्रहण।
सूरजमुखी को पूरा विश्वास है
कि धूप पहुंचने ही वाली है उस तक
तब उसकी आभा
सौंदर्य और वजूद के आगे
बरगद रहेगा रूखा, सूखा
और फीका पहले की तरह
लेकिन कुछ समय की कुंठा के जवाब में
सूरजमुखी का फूल लिखता है एक कविता...
'बूढ़े, रूखे और खोखले
बरगद के तले
फूटने वाले हैं कई अंकुर
ज्वालामुखी बनकर।'

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