सोमवार, 22 मार्च 2010

दर्द

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क्षितिज के उस पार
नीली चादर ओढ़े
तारों की रोशनी में
स्मृतियों का दर्द छिपा है ।
घाटी की ढलान
और वृक्षों के झुरमुट में
महकते कुसुमों के बीच
चमकती दो आंखें
बुलाती हैं इशारे से
सम्बोधन के दायरों को लांघ
औपचारिकताओं का पल्लू छोड़
निर्विकार भाव से वर्तमान की मशीन
और अतीत के पर्दे पर
दर्शाई जाती है
टूटे शीशे सी विकृत परछाईयां
अतीत की स्मृतियों का
दर्द अंकित है जिनमें।
आईने में
प्रतिबिम्ब
पूछता है मुझसे
अश्रुओं की परिभाषा
और सम्बोधनों का अर्थ
क्षितिज के पार
नीली रोशनी में
कौन सा दर्द छिपा है ?


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