सोमवार, 8 मार्च 2010

गांव शहर हो गया है


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वैसे तो भागते हैं रोज
पर लोगों में आज तेजी है
'टेंशन' की हवा
मौसम ने भेजी है
दही छाछ और मट्ठा
जहर हो गया है
गांव अब शहर हो गया है।

खेतों की हरियाली ने
सीख लिया है
होना लाल-पीला
उड़ती गोधूलि
बैलों की बजती घण्टियां
और बैलगाड़ी के पहियों
का मोहक संगीत
हो रहे हैं
कैमरे में कैद
दुनयी के हर कोने से
जुड़ने का सुख
सच्च....
पच नहीं पा रहा है।
पानी
नदी से नहर हो गया है।

शाम के धुंधलके में
जलने वाला
दादी का लालटेन
अप्रासंगिक है अब
वर्षों पुराने सहयोगी हाथों में
साम्प्रदायिकता की लाठियां
वैमनस्य की गालियां
स्वार्थों के शब्द
मतभेदों की खटास है
सम्बन्धों के बीच
फंसी
अर्थ की फांस है
सुख चैन और
स्नेहिल सम्बन्धों पर
चिन्ताओं का कहर हो गया है
हर गांव अब शहर हो गया है।
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