बुधवार, 20 जनवरी 2010

कहां है वसन्त ?

कहां है वसन्त ?
आज वसन्त पंचमी है। यूं तो वसन्तोत्सव का अपना एक मजा है। हर ओर वासन्ती छटा। प्रकृति की हरी चादर और मनमोहक फूलों पर भौंरों का गुंजन जीवन में एक अद्भुत अहसास का रंग भरता रहा है। सदियों से यह पर्व मां सरस्वती को समर्पित रहा है। कलम और सृजन को समर्पित है। सौन्दर्य और प्रेम को समर्पित है। कहा जाता है कि यह मौसम प्रेम के लिए उद्दीपन का काम करता है। शायद इसीलिए इसे मदनोत्सव भी कहा गया है। यदि हम मौजूदा दौर को देखें तो क्या हम पता लगा पाएंगे कि वाकई में वसन्त या मदनोत्सव आ गया है ? हर आदमी जल्दी में है किसे पडी है कि ठहरें और देंखें कि हमारे जीवन की हार्ड डिस्क से वसन्त और उसके अहसास दोनों को किसी ने वाइरस संक्रमित कर 'डिलीट' कर दिया है। हर ओर सीमेन्ट और कंक्रीट का जंगल फैला हुआ है। बडी बडी इमारतें वसन्त को मुंह चिढा रही है, मानो कह रही हों - यहां तो हमारी जगह है 'वसन्त' तुम यहां कहां आ गए हो ईडियट ?