सोमवार, 22 मार्च 2010

मृगतृष्णा

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मानवीय दुखों की आत्मानुभूति
जब जीवन के मरुस्थल पर
सुखों की चाह
छद्म मृगतृष्णा को जन्म देती है,
तब दुखों की पराकाष्ठा
सूक्ष्मतम लोचन से
प्रतिबिम्बित गहराई को
परिलक्षित करती है।
जीवन को
आत्मसात करने के लिए
छोटा रास्ता अन्वेषित रकना
सुखों के पीछे
बेतहाशा भागना
द्वितीय श्रेणी का व्यवसाय
क्या
रोटियों की कीमत
श्रमधारा की उपेक्षा कर
मानसिक आत्मघात द्वारा
प्रात की जा सकती है ?
अगर हां,
तो यह उच्च वर्ग के लिये मामूली बाल क्रीड़ा
मध्यम वर्ग के लिये
आर्थिक विषमताएं
और
निम्न वर्ग के लिये
मृगतृष्णा सिद्ध होगी।
चंदा की शीतलता
और सूरज की तपन
मेरे सुखी दिल की
दुखी वेदना के
हम जोली हैं
जो कभी अलग नहीं हो सकते
महज कायरता है अलगाव।
प्यार की मद्धिम मोमबत्ती
तपिश से गल जाएगी
बर्फ की चट्टान पर
ठिठुरते अधनंगे भविष्य को
वर्तमान का आदिम सत्य
आअखिर
कब स्वीकार पाएगा ?

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