शनिवार, 13 मार्च 2010

शब्द

***********
असीम सम्भावनाओं के धनी
अभिव्यक्तियों के स्वामी
भावनाओं के प्रस्तोता
संवेदना के सर्जक
मौन हो तुम
क्यों ?
सांसों में तुम्हारे विचारों की गर्मी
आंखों में पैनापन
प्रस्तुति में प्रखरता
सद्भावनाओं का सान्निध्य
प्रेम की प्रगाढ़ता
और निश्छल अपनापन
फिर भी तुम मौन हो ?
विषाद के गहन अंधकार
निराशा की नीरवता में
चिन्तन
शिल्प और सौंदर्य के सर्जक हो तुम ।
उलझनों के कुहासे
अन्तर्मन के धुंधलके को हटा दो
पहचानों अपनी सत्ता
हर किसी के
भाग्य का फैसला
अब तुम्हारे हाथ में है।
***********

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें