सोमवार, 22 मार्च 2010

दीप

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दीप
तेरी धवल ज्योति में
अतीत की स्मृतियां पली।
तेरी छत्र छाया में हुआ
महामानवों का जन्म
परिस्थितियों के ग्रहण
लगते रहे मगर
तिमिर को चीर कर
तेरी ज्योतिर्मय किरणें
पथ प्रदर्शक बनती रही।
पीढ़ियां आईं
चली गयीं
विचारों के ज्वार भाटे
क्रन्दन करती कल्पनाएं
सदैव निराशा के गर्त से
रिसती रहीं
फिर भी तुमने
ठिठुरती जिजीविषा को
गर्मी दी
गति दी
और हम
अतीत से आज तक का सफर
पलक झपकते ही तै कर गये
मगर इस यात्रा के
अप्रत्यक्ष विषादों की अनुभूति के
केवल तुम हो साक्षी।
तुम्हारी बाती सदैव
हमारी सहचर रही है
उन बीते दिनों का साथ
अविस्मरणीय है
तुम्हारा साहस भरा सम्बल
मैं कभी भुला नहीं पाऊंगा
निर्जीव होने पर भी
सजीवता की प्रतिकृति हो तुम
आने वाले समय को
अपना मार्गदर्शन देते रहना
और सदैव की तरह
वर्तमान के अतीत को
भविष्य का वर्तमान बनाते रहना।

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