बुधवार, 31 मार्च 2010

अपेक्षा मत करो

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सपने में बनाए महल को
साकार रूप देने का
पूरा-पूरा प्रयास कर रहा हूं।
मैं/आत्मविश्वास की
हर ईंट के साथ
महल को मजबूती देने की
पूरी-पूरी कोशिश कर रहा हूं।
अपनी सामर्थ्य के अनुसार
हर संभव करने में जुटा हुआ हूं
हर उम्मीद से बढ़कर
प्रदर्शन करना चाहता हूं
हर कसौटी पर श्रेष्ठता के साथ
खरा उतरना चाहता हूं मैं।
धरती पर पैर जमाकर
आसमां छूना चाहता हूं।
मैं
वह सब कुछ पाना चाहता हूं
जो मेरी कल्पनाओं में बसा है
जो मेरे मन को जंचा है
मैं वह सब कुछ पाना चाहता हूं
जिसकी खुशबू हर पल
मेरे मन के झरोखों से
मानस तक प्रवाहित होती रहती है।
बस
यही कुछ है मेरे पास
अब यदि तुम इससे ज्यादा
आशा करोगे मुझसे
तो शायद मैं वह नहीं कर पाऊंगा
तुम्हारी वे आशाएं जो
मेरी पहुंच
और मेरे वजूद से भी ऊपर हैं
जिन्हें मैं कूद कर नहीं छूना चाहता।
मैं सीढ़ी वाला आदमी हूं
बहुत धीरे-धीरे चढ़ता हूं
लापरवाही के साथ।
परिश्रम बहुत ज्यादा नहीं कर पाता हूं
बहुत चाह कर भी।
कभ-कभी भावनाएं डोल भी जाती हैं
हल्के-हल्के
हवाओं के झोंकों के साथ।
ज़रूरत से ज्यादा
आशाएं मत रखो ।
निश्चित रूप से
तुम जितना समझते हो
मैं उतना सामाजिक
और सार्वजनिक शायद नहीं हूं।
मेरा अपना एक तरीका है
सोचने
और करने का
तुम उसी से प्रभावित हो
यह मुझे मालूम है
पर तुम्हें यह नही मालूम
कि मेरे में भी
कोई 'मैं' है
जो मेरा अपना है
विशुद्ध व्यक्तिगत।
मैं अपने सम्पूर्ण अन्तःकरण से
श्रेष्ठ करने का प्रयास कर रहा हूं
तुम्हारी ज्यादा आशाएं
मेरे आत्मविश्वास को हिला देती हैं
कभी-कभी अंदर तक
सिहर भी उठता हूं
कि तुम मुझसे कितनी अपेक्षाएं रखते हो
अगर मैं उतना नहीं कर पाया
जितना तुम चाहते हो
तो मैं कुछ नहीं सुन सकूंगा।
मुझसे इतनी अपेक्षाएं मत करो
कि मैं विचलित हो जाऊं
मुझे अपने तरीके से
अपने सपनों के महल को
साकार रूप और जीवन्तता देने दो
जब यह पूरा हो जाएगा
तब मैं खुद आगे बढ़कर
तुमसे
बधाई स्वीकर करने आ जाऊंगा।


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