बुधवार, 31 मार्च 2010

दरवाजे

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मुझे पता है
दरवाजों की परिभाषा
और उनका वजूद
मालूम है मुझे
चौखट और खिड़की की
ऊंचाई का अंतर
दरवाजे साक्षी हैं
भांति-भांति के वजूदों का
अलग-अलग चालों
और
तरह-तरह की महक का।
दरवाजा गवाह है
इतिहास का
और इतिहास की उन तारीखों का
जब-जब उसे बंद होना पड़ा
यह देखता आ रहा है
अपने घटते आकार
और क्षमताओं को
चौखट के दो दरवाज़े
अब एक हो गये हैं
और उग आई है
उसमें एक आंख
अब दरवाजे डरे हैं
सहमे हैं
भयभीत हैं।
दरवाज़े चाह कर भी
पूरे नहीं खुल पाते
अब वे इनकार करते हैं
किसी भी तरह की गवाही से
अपने वजूद में
परिवर्तन के साथ
दरवाजे खुद से बेखबर हो गये हैं।
अब खिड़कियों को
देनी पड़ रही है
दरवाजों की गवाही।


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