सोमवार, 8 मार्च 2010

मुश्किल

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हंसना
मुस्कुराना
हर पल जीना
मुश्किल हो गया है।
फुर्सत कहां है
अपने से ज्यादा कि देख सके
दूसरों की ओर ।
आत्मकेंद्रित
और असहिष्णुता की परिधि में
प्यार
भाईचारा बढ़ाना
पी जाना गुस्से को
कितना मुश्किल हो गया है ।
हर कदम पर साथ है किंकर्तव्यविमूढ़ता
पल-पल टकराते हैं विचार
समर्पण / प्यार
और स्नेह की माला को सीना
कितना मुश्किल हो गया है।
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