****************************
स्मृतियों के घेरे में
श्रद्धाओं का दौर
कब तक चल पया.... ?
उफनते भावावेग की गहराईयां
पंक्तियों के शब्दों को
बिखेर गयी बेतरतीब
छलकते घट का नीर
आंचल भिगो गया
किंकर्तव्यविमूढ़ता
उड़ा ले गयी
अक्षरों की आकृति
स्मृतियों की वक्रता
और
श्रद्धाओं का दौर
अन्ततः
स्वप्न नहीं है।
****************************
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें