बुधवार, 31 मार्च 2010

रेत में मुंह

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आदमी
रेत में मुंह छिपाकर
शतुर्मुर्ग सा हो गया है अब।
चारों ओर सूचनाओं का
विस्तृत जाल है
परत-दर-परत
खुलते हुए
आदमी विज्ञान हो गया है।
विज्ञान के पास है
सपनों की दुनिया
यह पहुंचा देता है इक पल में
आपको वहां
जहां हैं ताज़े खिले फूल
बिछा मखमल
बहता पानी
अप्सराएं
और आनंद।
लेकिन हज़ारों का बिल भुगतान के बावजूद
आप सूंघ नहीं सकते
फूलों की महक
अनुभव नहीं कर सकते
मखमल का मुलायमपन
और महसूस नहीं कर सकते
उन अप्सराओं को
जो लुटाती हैं आनंद के मोती
और खुशियों के सीप।
धातु के तारों से होता हुए
सम्पूर्ण विश्व
आपके हाथों में है
कई राज
जो शायद हर किसी के पास नहीं।
अब आदमी
कैद हो गया है
इस मकड़जाल में
चाह कर भी वह अब
कुछ छिपा नहीं सकता।
रेत में मुंह छिपाए
शुतुर्मुर्ग को
अब अपना चेहरा दिखाना ही होगा।


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