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मैं
सोचता हूं कभी-कभी
विचारता हूं देर तक
वह स्थिति
जिस मानसिकता में हम जी रहे हैं
आखिर कब खत्म होगी
यह अन्तहीन मौन बहस ?
क्यों नहीं चाहता है कोई
किसी की प्रगति ?
रोकता है क्यों बढ़ने से आगे
कपट के फंदों का निर्माण
आखिर कब खत्म होगा ?
जो बढ़ते पैरों को रोक
बढ़ते को नीचे गिरा
संवेदनहीनता में जी रहे हैं
फिर भी संवेदनाओं का ठेका ले रहे हैं
जड़ स्थिति और मानसिकता की
तथा कथित ऊंचाईयां छू कर
वे हजार-हजार बददुआओं
के बाद भी
झूठी सफलता के झंडे लहरा रहे हैं ।
झंडे टिके हैं
ना जाने किस आधार पर ?
फिर भी
मेरी सोच विवश है
कि हवाओं में इतनी शक्ति नहीं
कि वह अपनी ऊर्जा से
आधारहीन डंडे को पटक कर
झंडे को दूर
सच्चाई की रोशनी में
उड़ाकर ले जाए।
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