बुधवार, 31 मार्च 2010

तुम्हारा प्रश्न

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तुम
मुझे पूछ रहे हो
कि मैं कौन हूं?
मैं तो
सदियों से सुन रहा हूं
इस सन्नाटे को
देख रहा हूं नीरवता
बांसुरी का स्वर
अभी भी गूंज रहा है कानों में ।
जब झपकाता हूं पलक
तो लगता है सोचते-सोचते
बीत गयी है सदी
मगर जब सिर्फ सोचता हूं
तो लगता है
कुछ ही क्षण तो हुए हैं आए।
कौन जीत सका है समय से ?
समझ नहीं पाता हूं
चल रहा हूं
या चलाया जा रहा हूं ?
खुद की परिभाषा
मुझसे संभव नहीं होगी।


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