सृजन पथ
बुधवार, 31 मार्च 2010
बुत
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बिजली गिरी
और उठकर चली गयी
बरसात हुई
और पानी बहकर चला गया
रात हुई
और अंधेरा सुबह-सुबह
सूरज की रोशनी से धुल गया
किंतु मैं
बुत सा खड़ा था
खड़ा ही रह गया
मौसम मेरे कानों में
जाने क्या कह गया।
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