बुधवार, 31 मार्च 2010

मन का सम्मान

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कभी-कभी
हारने की हद तक
होता है हौसला।
नियमित रूप से सहनी होती है
ऐसी स्थिति
तब अंदर जुटाया हुआ आत्मविश्वास
असंतुलित हो जाता है।
निरंतर उपेक्षा
आदमी को बनाती है ढीठ।
किसी से अपेक्षाएं रखना
उसे गतिशील बनाता है
उसकी गतिशीलता
अपेक्षा करने वाले की ही
गतिशीलता का परिचायक है ।
प्रशासन चलाने का काम
कभी-कभी थोपा जाता है
ऐसे लोगों पर
जिन्हें अपेक्षा और उपेक्षा
का अंतर बिल्कुल पता नहीं होता है
ऐसे लोगों से
परेशान रहते हैं उसके अधीनस्थ
पर कह कुछ नहीं पाते हैं
कर कुछ नहीं पाते
गूंगे जो होते हैं।
गूंगापन बरसों से
रचा-बसा है इनकी रगों में
प्रशासन पर थोपे गये लोगों की
दो प्रजातियां होती हैं
दोनों विचित्र और मौलिक।
पहली
थोपे जाने की मार से मुंह की खाते हैं
दूजी
थोपे जाने की मार को
सहयोगियों पर मारते हैं
(कथित रुतबा भी हो सकता है यह)
ऐसे विचित्र अधिकारी
बहुत जल्दी पा लते हैं वांछित सफलता
पर / पहुत जल्दी खो देते हैं
अधीनस्थों से मिलने वाला
मन का सम्मान।


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1 टिप्पणी:

  1. sir,
    realy awsum poem...

    kabhi kabhi kisi ko bina kuch kaam kiye hi sari khushiya aur safalta mil jati hai,
    Aur kisi ko safalta milne par bhi,nirasha hi haath ati hai........


    " kismat bhi kya khoob rang lati hai, karma ko bhi wo peeche chodh jati hai ".

    regrds
    sakshi

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