बुधवार, 31 मार्च 2010

सम्बन्ध

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सूने और निस्तेज मन में
एक खूबसूरत आत्मिक सम्बन्ध ने
प्रवाहित की उत्साह की ऊर्जा।
ऊर्जा खुशबू बनी
और छा गयी
अन्तःकरण के समूचे परिवेश पर
ऊर्जा का संचार पा कर
मन ठिठका, रुका
झुक कर खुद को देखा
आंखों को गोलाई में घुमाते
माहौल को टटोला
कंधों को उचकाया
दोनों हाथ जेब में डाले
और फिर चल पड़ा।
ऊर्जा संगीत बनी
और सूने मन में गुंजायित हो उठी
सौम्य संगीत की सहस्त्रों आवृत्तियां।
संगीत ने दिया मानस को मृदु स्पर्श
और हवा में फैल गये
गुनगुनाहट के स्वर।
मन के कानों में भी हुई गुनगुनाहट की छुअन
एक बारगी मन चौंका
फिर मुस्कुरा दिया।
मन ने उड़ान भरी
और चाहा सम्बन्ध का नामकरण करना।
नाम देने से बदल जाएगा नज़रिया
और सोचने का ढंग
यही सोचा और थम गया मन ।
कुछ नहीं बोला / कुछ नहीं कहा
मन के मौन को देख
सम्बन्ध भी रहा चुप / निस्तब्ध।
हालांकि सम्बन्ध
कभी कुछ नहीं कहते
वे सिर्फ मन का कहा सुनते हैं
सैंकड़ों सम्बन्ध बनते हैं प्रतिदिन
और सुनते हैं मन का कहा
तब कथनों के साथ ही
नामकरण भी संस्कारित हो उठता है।
सम्बन्ध ने ताका मन की ओर
खेद मिश्रित मुस्कान बिखेरी
मन की ढीठता के नाम
सम्बन्ध और मन जानते हैं बखूबी
सम्बन्धों के निहितार्थ
और उससे जुड़ी महक को
दोनों के बीच पसरे मौन ने
कर दिया अब बयां
जो बरसों से कहा
और सुना जाता रहा है
मन व सम्बन्ध ने फिर एक दूजे को देखा
और हवा में तैर गयी
दो मृदु मुस्कानें
तब्दील हो गयी
एक नई ऊर्जा में
समा गयी आशा बन कर
रगों में, धमनियों में
शिराओं में,
मन अब
एक बार फिर चल पड़ा है।


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