डा कुंजन आचार्य
पिछले कुछ दिनों से हर शहर और चौराहों पर छोटे छोटे चींटीनुमा जीव लाखों की तादात में नारे लगा लगा कर प्रदर्शन कर रहे है। पुलिस ने बताया कि इस जीव का नाम दीमक है जो कस्बेग, गांव, खेडो, खेतों, खलिहानों से निकल निकल कर शहर पहुंच रही है और नारे लगा रही है। राष्ट्रीय दीमक महासंघ के तत्वावधान में दिए गए ज्ञापन में कहा गया है कि दीमक के नाम का गलत सलत इस्तेमाल हो रहा है। सार्वजनिक मंचों से उनका नाम ले ले कर उनकी मानहानि की जा रही है। इधर दीमक महासंघ के प्रदर्शन की ब्रेकिंग न्यूज वेन्डी टीवी पर चलते देख सांप और बिच्छु एकीकृत संघ ने भी ताल ठोक दी है। ये भी अपनी अस्मिता के लिए ईंट से ईंट बजाने की बात कर रहे है। वरिष्ठ जीव परिषद ने इस तरह के वक्तंव्यों की घोर निन्दा करते हुए इसे छोटे और लघु जीवों के सम्मान पर सीधा हमला बताया है। संघ ने अपने एक बयान में कहा कि इस तरह से यदि बार बार हमारा नाम लेकर सार्वजनिक मंचों पर हमे अपमानित किया जाएगा तो वे राष्ट्री्य जीवाधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाएंगे।
अक्सर देखने में आया है कि लोग एक दूसरे कि तुलना उनकी आदतों के मुताबिक उस तरह के जीव से करते है मसलन इतना काला जितना कौवा। इतना मोटा जितना गैंडा। इतना चिपकू जितनी जोंक। इतना मूर्ख जितना गधा आदि आदि। ऐसी ही अन्य प्रजातियां भी अपनी प्रतिभा के अनुसार प्रकाश में आती जाती रहती है। हम स्वयं भी भेड चाल वाले है और इसलिए कभी कभी खुद को वही समझने भी लग जाते है। खचाखच भरी बस में स्वयं की तुलना इन्हीं प्राणियों से नहीं चाहते हुए भी करने लग जाते है। शायद ऐसी ही किसी सूक्ष्म प्रेरणा के वशीभूत होकर हमारे एक केन्द्रीय मन्त्री ने हवाई जहाज के इकोनोमी क्लास में यात्रा करने वालों को पशु वर्ग की उपाधि से नवाज दिया था। वैसे भी घोषित तौर पर हमारे पूर्वज बन्दर थे। कहा जाता है कि इंसान गुस्से में जानवर बन जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि इंसान को अपने अन्दर छिपे जानवर को कभी बडा नहीं होने देना चाहिए लेकिन ऐसा होते हुए तो नहीं दिखता। छोटे गांव से लेकर राजधानी तक छोटी बच्ची से लेकर दामिनी तक हर कोई जानवरों का शिकार हो रही है। यह घोर मूल्यहीनता को दौर है। यहां हर कोई रंगा सियार बना हुआ है।
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