रविवार, 24 फ़रवरी 2013

लो आ गया ...परीक्षा का भूत


डा कुंजन आचार्य

आपने भूतों के बारे में तो सुना ही होगा। भूतों के कई प्रकार होते है। हमारे देश में सभी वेराइटी के भूत बहुतायत से पाए जाते है। लोग खामखां भूतों से डरते है। भूत कभी किसी को डरा ही नहीं सकता क्‍योंकि वह खुद डरा हुआ होता है। यदि डरा हुआ नहीं होता तो क्‍या यूं छिप कर घूमता। हमारे यहां जो लोग दिन रात काम में लगे रहते है उन्‍हें काम का भूत कहते है। देखो यार फलाना चन्‍द तो अपने काम में भूत की तरह लगा रहता है। वहीं दूसरी ओर भूत भगाने वाले भी हमारे यहीं पाए जाते है। भोपे से लेकर ताबीज बनाने वाले तक लेकिन बहुत ही कम लोगों को पता हे कि मार के आगे सारे भूत भाग जाते है। अब देखों ना जैसे जैसे फरवरी खत्‍म होने को होती है एक नए प्रकार का भूत आकार लेना शुरु कर देता है। इस भूत का नाम है परीक्षा पिशाच। यह बहुत खतरनाक और सिट्टी पिट्टी घुम कर देने वाला भूत है। बहुधा छोटे बच्‍चों और किशोर वय पर इसका अधिक असर होता है लेकिन इस मौसम में तो कालेज में पढने वाले नौजवानों पर भी इसकी हवा का असर शुरु हो गया है। इस भूत के डर से अभिभावकों ने बच्‍चों को टीवी व खेलना बन्‍द करवा दिया है। जो समझदार बच्‍चे कालेज में पढते है उन्‍होंने भी घर से निकलना कम कर दिया है। सैर सपाटे, मौज मस्‍ती वाली जगहों पर इस भूत का प्रकोप बढ जाता है। इससे बचने के लिए नोट्स नाम के ताबीज बनवाए और लिए दिए जा रहे है। यह भूतों की एक अंशकालिक प्रजाति है। अप्रेल से मई के अन्‍त तक यह भूत भाग जाता है। परीक्षा होती ही विकट है भैये। हर कोई सामना नहीं कर सकता इसका। बचपन में जब हमारी परीक्षाएं आती थी तो खाना गले से उतरता ना था। सारी पिकनिक सैर सपाटा बन्‍द हो गए है। अब देखो ना गर्ल फ्रेंड- ब्‍वाय फ्रेंड के साथ चाय पकौडी के सारे कार्यक्रम भी स्‍थगित कर दिए गए है। मोबाइल का मैसेज पेक भी रिचार्ज नहीं हुआ है। साल भर पढाई नहीं की है इसलिए अब यह भूत तो सिर पर ही सवार है और पूछ रहा है बता क्‍या क्‍या लिख कर आएगा। वैसे भी परीक्षाएं हम हर रोज देते है। महंगाई से कैसे निपटेंगे और घर कैसे चलेगा, यह बडी परीक्षा हर आम आदमी के पास है। सिंलेंडरों की घटती बढती संख्‍या से चूल्‍हा कैसे जलेगा यह भी एक सवाल इसी परीक्षा का है। आतंकवादियों से निपटने के लिए सरकारें हर बार परीक्षा देती है। अब देखो ना कई सारे राज्‍यों में एक साथ नेताओं की परीक्षाएं आ रही है। अपने यहां भी आने वाली है। जो पास होगा वो विधानसभा पहुंचेगा। इसके बाद दिल्‍ली वाली परीक्षा भी है। गाहे बगाहे नोट्स जुगाडने और पढाई का सिलसिला नेताओं में भी शुरु हो गया है। अब वह दौर तो रहा नहीं कि पुस्‍तकालयों में जा कर हम बडी बडी किताबे लाकर पढे। अब तो पास बुक और वन वीक सीरिज का जमाना है। एक सप्‍ताह का तैयार हलवा खाओ और परीक्षा के भूत को भगाओ। स्‍कूल या कालेज के टाइम में यदि हमारे बस्‍तों में कोई पास बुक या कुंजी दिख जाती थी तो मास्‍टर की मार तय थी ऊपर से पूरी कक्षा के सामने तिरस्‍कार होता सो अलग। अब इन कुंजियों के प्रयोग से ना तो मार का डर है ना तिरस्‍कार का क्‍योंकि मास्‍टर जी तो खुद ही इसे लिख रहे है और कह भी रहे है जाओ भाई साल भर नहीं पढे तो कोई बात नहीं। जब जागो तभी सवेरा। कुंजियों को पढो ओर अपना भविष्‍य गढो।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें