गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

बजट पर नुक्‍ता चीनी

-डा कुंजन आचार्य-

बजट बडा बलवान। जिसका बन जाए उसकी बना दे। जिसका बिगड जाए उसको धूल चटा दे। देश का बजट तो वाकई बडा होता है। बडे बडे लोग चर्चा करते है। बडे बडे लोग प्रतिक्रियाएं देते है। कुछ तारीफ के पुल बांधते है। कुछ नुक्‍ताचीनी कर के उन पुलों को ध्‍वस्‍त कर देते है। अब अपन की गणित तो बहुत कमजोर है। अर्थशास्‍त्र तो है ही पहले से कमजोर। इस मामले में मैं और अमिताभ बच्‍चन बिलकुल एक जैसे है। उनसे जब बजट पर प्रतिक्रिया मांगी गई तो बहुत खूब कहा। जब घर के बजट का ही अन्‍दाजा नहीं है तो देश के बजट पर क्‍या टिप्‍पणी करेंगे। सही भी कहा। हम भी ऐसे ही है। जिनका अपना बजट हमेशा गडबडाया रहता हो वे भला देश के बजट की क्‍या चिन्‍ता फिक्र करेंगे। चाहे जिसके भाव बढा दो। चाहे जिसके भाव कम कर दो। हम तो मस्‍तमौला है। फकीर है। सांसारिक मोहमाया और बन्‍धनों से क्‍या लेना देना। ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी। विपक्ष हमेशा से कोसने का काम करता है। कल भी किया। विपक्ष की एक टिप्‍पणी बडी जोरदार रही कि साहब का बजट लोगों को चौबीस घंटे बाद समझ में आएगा। लो जी चौबीस घंटे तो हो गए। मुझे तो अभी भी समझ में नहीं आया, ना आगे आएगा। मैं तो केवल यह जानता हूं कि जिस दिन मेरी जेब का बजट मेरे मुफीद हो जागगा जब देश का, प्रदेश का, जगत का बजट भी समझ में आ जाएगा। अब मैं नाच्‍यौ बहुत गोपाल। आम आदमी को क्रिया प्रतिक्रिया का समय ही नहीं है वह तो लगातार नाच रहा है। महंगाई के सुरों पर ताल दे रहा है। उसके साथ कदम मिला रहा है। पेट्रोल के दामों के अनुसार स्‍कूटर की टंकी छोटी करने की कवायद कर रहा है। नमक तेल के भावों के अनुसार थाली को छोटा करने की कोशिश कर रहा है। बिजली के बढते दामों से लाचार अपने घर की रोशनी कम कर रहा है। आम आदमी क्‍या क्‍या कम करें भाई। बढाने की तो कोई सीमा होती नहीं है लेकिन कम करने की तो सीमा होती है। बढती महंगाई के बोझ के तले दबा आम आदमी अपने दुखों तकलीफों को कैसे कम करें। अपने आसूंओं को कैसे कम करें। इस पर भी तो कोई प्रतिक्रिया दो भाई।

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