गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013
धीरज धरें..... लेकिन कब तक ??
ब्लास्ट के बाद दिलसुख नगर का क्षतिग्रस्त बस स्टाप
-डा कुंजन आचार्य-
फिर धमाके। लाशें ही लाशें। सडकों पर खून। अस्पतालों में अफरा तफरी। जिनके परिजन घरों को नहीं लौटे ऐसे हैदराबादवासियों की बदहवासी। जिनके रिश्तेदार और परिजन वहां है उनकी चिन्ताएं। हर ओर शोक। मातम और मायूसी। हर बार देश के दुश्मन आते है, सारी व्यवस्थाओं को धता बताते है और हमरा चैन छीन ले जाते है। हम धीरज रखते है। रखते आए है। सवाल यही है कि आखिर कब तक। धैर्य की भी एक सीमा है। ब्लास्ट के बाद हर बार की तरह सरकारी अमला दौडता है। एनआईए, एसपीजी टीमें आती है। मन्त्री, सन्त्री पहुंचते है। दिलासा, जांच, मुआवजा और आंसू। हम हर बार की तरह लकीर पीटते है। कहते है धीरज धरो। मुश्किल घडी में धीरज जरुरी होता है लेकिन इन कनखजूरों का सफाया बेहद जरुरी है। इन जहरीले कीडों को मारना बेहद जरुरी है जो समाज और राष्ट्र को शान्ति से जीने नहीं देना चाहते। राष्ट्र की एकता और शान्ति के दुश्मनों को सबक सिखाना बहुत जरुरी है।
हमारे धैर्य को कहीं कायरता ना समझ लिया जाए। हम पर कहीं डरपोक होने का लेबल ना चस्पा हो जाए। पडौसी हमारे अमन से खौफ खाते है। वे इस अमन को हर कीमत पर ध्वस्त करना चाहते है। इसमे स्थानीय मिली भगत की भी कडाई से पडताल होनी चाहिए। कोई भी देश का दुश्मन स्थानीय मदद के बगैर हमारी नाक के नीचे ऐसा नहीं कर सकता। सरकार को सख्ती दिखानी होगी। हमे भी साहसी होना होगा। जागरुक होना होगा।
हैदराबाद एक नाम है। यह नाम किसी अन्य शहर का भी हो सकता है। आतंकी कहीं भी जा सकते है। बम प्लांट कर सकते है। हमे आस पास चौकस निगाह रखनी होगी। संदिग्धों की सूचनाएं प्रशासन तक पहुंचानी होगी। यह भी यदि हम कर लें तो पुलिस को भी आसानी होगी। बेचारी पुलिस और उसका सबसे नीचे का कांस्टेबल तो चोरियां, पाकेटमारी जैसी समस्याओं को रोकने में ही व्यस्त है। उसे अवकाश ही नहीं कि वह इस तरह की बडी नापाक हरकतों पर भी निगाह डाल सके। हमारे सुरक्षा तन्त्र को भी मुस्तैद बनाना होगा। सुरक्षाकर्मियों को भी चौकस और दुरस्त करना होगा। दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर हमे देश के लिए भी सोचना होगा। देश है तो हम है। मैंने हैदराबाद में छह साल टीवी पत्रकारिता की। दिलसुखनगर शहर का बाहरी हिस्सा है। उपनगर है। कल गुरुवार को जहां ब्लास्ट हुआ इस के ठीक पास वाली गली में मैं 2004 में करीब छह माह रहा। यह बाजार जो अति व्यस्त है इसमें मैंने घंटों गुजारे है। चित्र में जो बिखरा बस स्टाप दिख रहा है इसके नीचे खडे रह कर कई बार बस की प्रतीक्षा की है। इन सब के चित्र देख कर मैं बहुत विचलित और आहत महसूस कर रहा हूं। असहाय महसूस कर रहा हूं। हैदराबाद में अति व्यस्ततम कोठी इलाके में है गोकुल चाट भंडार। राजस्थानी संचालक है। लाजवाब चाट और बेहतरीन स्वाद। वहां रहते हुए हर रविार की शाम चाट खाने का नियम बन गया था। 2007 में एक रविवार को दोपहर बाद बहुत बरसात थी इसलिए चाट का कार्यक्रम निरस्त किया गया। कुछ देर बाद पता चला कि गोकुल चाट में बडा विस्फोट हुआ है। तब भी लाशें बिछ गई थी। गोकुल चाट की रक्तरंजित दिवारों को देख कर मैं दहल गया था। इसलिए नहीं कि यदि मैं वहां होता तो क्या होता बल्कि इसलिए कि हम कितने असहाय है। कोई भी कभी आता है और हमे सरेराह तमाचा मार कर चला जाता है। हम वाकई बहुत असहाय है। यहां एक घटना याद आ रही है। म्यूनिख ओलम्पिक में इजराइल के एक दर्जन खिलाडियों को आतंकियों ने मार डाला था। प्रतिक्रिया में इजराइल ने उन सभी आतंकियों को दुनिया के कोने कोने से चुन चुन कर मारा। अन्तिम आतंकी घटना के दस साल बाद उसी के देश में उसी के देश में इजराइली कमांडो द्वारा मारा गया। आतंकवाद के खिलाफ इजराइल का जज्बा लाजवाब है। हम किसी से तो कुछ सीखे। (फोटो सौजन्य- भास्कर डाट काम)
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