बुधवार, 20 फ़रवरी 2013
टेम्पो चलाने का सुख
-डा कुंजन आचार्य-
यदि आप कार चलाते है। जीप चलाते है। बस चलाते है या चाहे स्कूटर, बाइक या साइकिल चलाते है लेकिन जो सुख टेम्पो चलाने का है वो इन सब वाहनों को चलाने में नसीब नहीं है। यह वह सुख है जिसकी कीमत वही समझ सकता है जो इसे चलाता है। बडे टेम्पो जिन्हें हम आम वाहन चालक 12 सीटर कहते है एक अद्भुत किस्म का यात्रा वाहन है। इस वाहन को चलाते हुए वाहन चालक तमाम तरह के मोह माया और बन्धनों से ऊपर उठ जाता है। हो सकता है आप मेरी बात को मजाक समझ रहे हो लेकिन मैं जो बात कहने जा रहा हूं वह बात शायद प्राचीन ग्रन्थों में भी उपलब्ध ना हो क्योंकि टेम्पो चालक जैसी महान शख्सियत के बारे में कभी किसी ने कल्पंना भी नहीं की होगी। यदि मेरी बात पर यकीन ना हो तो स्वयं देखिए। हाथ कंगन को आरसी क्या। यहां आरसी से मतलब टेम्पो की आरसी से है। जब हाथ में टेम्पो चलाने का कंगन हो तो उसे किसी आरसी वारसी की जरुरत नही पडती। तब चालक उदयपुर की सडक पर ऐसे टेम्पो चलाता है जैसे अगस्ता लैंड हेलिकोप्टर। ना तो उन्हें कोई रोक सकता है ना कोई टोक (ठोक) सकता है। क्या दिल्ली गेट ओर क्या सूरजपोल। क्या ठोकर चौराहा और क्या उदियापोल हर ओर इन्हीं का साम्राज्य है। पते की बात तो यह है कि पूरे शहर के ट्रेफिक को अस्त व्यस्त करने का इन्हें लाइसेन्स प्राप्त है। सवारी रुपी प्रभु के दर्शन होते ही टेम्पो चालक को फिर किसी की परवाह नहीं रहती, वह बीच सडक में टेम्पो रोक कर उस सवारी को राजकीय सम्मान से स्थान देता है। इस बीच सडक पर पीछे कोई आ रहा है या उससे ट्रेफिक रुक गया है इस तरह की तुच्छ बातों की परवाह टेम्पो चालक अपनी शान के खिलाफ समझता है। चौराहों पर एक के पीछे एक टेम्पो इस तरह कतारबद्ध होकर सवारी के लिए खडे हो जाते है जैसे टेम्पों चालकों की रैली हो रही हो। इस कतार के बीच से कुछ टेम्पो बीच सडक में खडे हो जाते है। बेचारे दूसरे वाहन चालक तो इन सबके सामने नतमस्तक हो कर बमुश्किल रास्ता बना कर निकल पाते है। इस पूरी (अ) व्यावस्था के दौरान आप यह ना समझे कि ट्रेफिक पुलिस रुपी तारनहार कुछ भी नहीं करते। उन्हें कृपया ना कोसें। वे तो बेचारे शकल देख कर इक्का दुक्का निरीह किस्म के बाइक सवारों को रोकते है और चालान बनाते रहते है। अव्व्ल तो उन्हें तो चालान बनाने से फुर्सत ही नहीं मिलती, और यदि फुर्सत मिल भी जाए तो उनकी इतनी हिम्मत नहीं कि टेम्पो चालक रुपी ताकतवर प्राणी को कुछ कह दे। एमबी कालेज के सामने कुम्हारो का भट्टा तिराहा, मुल्ला तलाई चौराहा, फतहपुरा चौराहा, सेवाश्रम तिराहा आदि ऐसे स्थान है जहां टेम्पो चालक अपनी स्वतन्त्रता से ट्रेफिक व्यवस्था को अंगूठा दिखते दिख जाएंगे। क्षमता से अधिक सवारियां भरना, काला काला धूंआ छोडते हुए शहर को हाई कार्बन सिटी बनाना, व्यवस्था तोडने पर कोई टोक दे तो लडने मारने पर उतारु हो जाना यह सब टेम्पो चालकों की अतिरिक्ति योग्यताएं है। यह सुख होंडा सिटी और मर्सडीज चलाने में नहीं है। उसको चलाते समय तो आप को थोडा डिसेन्ट बनना होता है। अब सिटी बसें तो बेचारी सवीना के एक मैदान में पडी धूल खा रही है, उन्हें चलाने की ना तो सरकारी इच्छा शक्ति है ना रुचि। शहर की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था इन्ही टेम्पो चालक देवदूतों के हाथ में है। इन्हें हम सब को मिल कर प्रणाम करना चाहिए।
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Sarcastic Boss!! Zabardast Likha Hai!!
जवाब देंहटाएंwah bahut hi shandaar.
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