-डा. कुंजन आचार्य-
अन्ना हजारे ने जब से भ्रष्टाचार के खिलाफ शंखनाद किया है पूरे देश में इस आन्दोलन को व्यापक समर्थन मिला है। अब बाबा रामदेव विदेशी बैंकों में जमा काले धन को देश में वापस लाने को लेकर एक बडी मुहिम छेड चुके है। दरअसल भ्रष्टाचार की झड़ें इतनी गहरी है कि उन्हें खत्म करना तो दूर आसानी से हिलाया तक नहीं जा सकता। दुनिया के भ्रष्ट देशों की सूची में हालांकि अभी हमारा देश पहले पायदान तक नहीं पहुंचा है लेकिन पिछले एक दो सालों में जितने घोटाले हुए है उसने देश की किरकिरी जरुर की है।
भारत में इस बात की सुविधा है कि आप सुविधा शुल्क चुका कर कोई भी काम करवा लें, चाहे वह काम एक रुपए का हो या एक करोड का। भ्रष्ट व्यवस्था का आलम यह है कि यदि कोई ईमानदार अफसर रिश्वत लेकर काम करने से ना नुकुर करता है या इनकार कर देता है तो भी रिश्वत देने वाले का काम तो होगा ही, क्योंकि वह उससे बडे अधिकारी को खरीद लेगा या मन्त्री से जुगाड भिडा कर ऐसे अधिकारी को ले आएगा जो उसका काम करने में सक्षम हो। कुल मिलाकर भ्रष्टाचार एक ऐसा रोग है जिसकी जितनी चिकित्सा करने की कोशिश की जाएगी वह उतना ही बढता जाएगा।
देश में हर जगह भ्रष्ट व्यवस्था है। उपर से नीचे तक हर जगह। पंचायत में दो हजार की सीमेन्ट लाने में पांच सात सौ की रिश्वत ली व दी जाती है। खुल कर खिलाया पिलाया जाता है। व्यवस्था के तहत एक काम करने का पैसा होता है। एक ना करने का। एक दशक पहले बीएसएनएल की मोबाइल सेवा की लांचिंग में क्यों अनावश्यक विलम्ब किया गया और इस विलम्ब से किस निजी कम्पनी को फायदा हुआ यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। एक दशक की बात छोडिए हम तो हाल की बात करते है जिसमें एक राजा सलाखों के पीछे चला गया। विश्व के अब तक के घोटालों में सबसे बडे घोटाले के तौर पर अपना नाम दर्ज करवा चुके 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले ने विश्व पटल पर भारत की बडी नाक कटाई। इस स्पेक्ट्रम आवंटन में किस किस को लाभ पहुंचाया गया, बाजार राशि से कम दरों पर आवंटन करके किस को लाभ हुआ और क्यों हुआ यह सब सामने आ चुका है। इस पूरे घोटाले में कई बडी मछलियां पहली बार कांटे में फंसी और सलाखों के पीछे हुई। इस में कई बडी मीडिया हस्तियों की भूमिका भी संदिग्ध रही। नीरा राडिया जैसे हाई प्रोफाइल मध्यस्थों की कलई खुली तो करूणानिधि की पुत्री कनीमोझी और कलईनार टीवी के निदेशक शरत कुमार तक को सीबीआई ने दबोच लिया। यह सब सम्भव हुआ सर्वोच्च न्यायालय की फटकार के बाद।सीबीआई के पास तो यह सब कुछ पिछले दो साल से था लेकिन राजनीतिक गठबंधन की मजबूरियां और जांच की कछुआ चाल से मामला नौ दिन चले अढाई कोस वाला ही साबित हुआ।
राष्ट्रमंडल खेलों में हुई अनियमितताओं ने तो हद ही कर दी। समिति के अध्यक्ष, पूर्व मन्त्री ओर दिग्गज कांग्रेस नेता सुरेश कलमाडी करोडों डकार गए। शुरु से कहते रहे उन्होंने कुछ नहीं किया, सब कुछ पारदर्शी है लेकिन अब सब भ्रष्टाचार और अनियमितताएं सामने आ गई है और वे तिहाड जेल में है।
देखा जाए तो भ्रष्टाचार का अर्थशास्त्र बडा पेचिदा है। हमारा तन्त्र ऐसा है कि यह सब करना अपरिहार्य है। ना करो तो संकट ज्यादा है। करने पर तो संकट तब आएगा जब पकडे जाएंगे। हमारा देश घोटालों का देश रहा है। भ्रष्टाचार और अनियमितताएं गहरे तक जमी हुई है। खरीद फरोख्त का काम तो बहुत दबंगई से होता है। संसद में बहुमत साबित करने के लिए तत्कालीन प्रधानमन्त्री पीवी नरसिंह राव ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को एक एक करोड में खरीद लिया था। ऐसा तो देश की सर्वोच्च इकाई में हुआ, वैसे देखें तो छात्रसंघों के चुनाव, नगर पालिकाओं, परिषदों, पंचायतों यहां तक की कर्मचारी संघों के चुनाव में भी यही सब कुछ होता है। पूरे कुए में भाग घुली हुई है।
देश की जनता अब इस स्थिति से आजिज आ चुकी है। इसी कारण अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरु किए गए आन्दोलन को पूरे देश में व्यापक जनसमर्थन मिला। लोकपाल मसोदे पर चर्चा जारी है और शायद अगले मानसून सत्र में इसे सदन के पटल पर रखा जाएगा। इस विधेयक के जरिए सभी सर्वोच्च लोकतान्त्रिक संस्थाओं को इसके जांच दायरे में लाया जाएगा। हालांकि कूटनीति में माहिर मन्त्री इस विधेयक के प्रस्ताव और मसौदे को लचीला बनाने में लगे है। देश का सर्वोच्च नेतृत्व स्वयं को सुरक्षित रखना चाहता है। यही हाल न्यायपालिका का भी है। नौकरशाह क्यों पीछे रहे, उनकी मंशा भी यही दिख रही है। कुल मिलाकर संसद तक पहुचते पहुंचते यह बिल कहीं अपना मूल स्वरुप खो कर अपनी दिशा ही ना भटक जाए। अन्ना ने जब भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम शुरु की तो पहले से ही स्पष्ट था कि इसमें सभी सर्वोच्च संस्थाएं दायरे में लाई जाएगी। अब सरकार चाह रही है कि प्रधानमन्त्री, शिखर न्यायपालिका और नौकरशाही को इस दायरे में ना लाया जाए। तो सवाल उठता है कि फिर इतनी चर्चाएं और वार्ताएं क्यों की गई। मतलब स्पष्ट है। सरकार भ्रष्टाचार के सफाए के प्रति गम्भीर नहीं है। इतनी बैठकों का नतीजा भी यह सब देख कर तो सिफर ही लगता है। सरकारी पक्ष बार बार बयान बदल कर भ्रष्टाचार के खिलाफ खडे हुए आन्दोलन की खिल्ली उडा रहा है। यदि इस विधेयक को कमजोर किया जाता है तो जनता का शीर्ष लोकतान्त्रिक नेतृत्व से विश्वास ही उठ जाएगा। भ्रष्टाचारी ताकतें और मतबूती से खडी हो जाएगी।
बाबा रामदेव ने भी इसी मुहिम को आगे बढाने की कोशिश की है। काले धन की देश में वापसी के मुद्दे पर जन आन्दोलन शुरु करने वाले इस संन्यासी को अनशन करने से रोकने के लिए पहले तो चार चार मन्त्री एअर पोर्ट पहुंचे। बातें हुई। समझाईश का दौर भी चला लेकिन अन्ततोगत्वा अनशन स्थल पर रात के तीन बजे जो कुछ भी हुआ उसने ब्रिटिश शासन की याद दिला दी। आखिर क्या मजबूरी है कि संप्रग सरकार भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए गम्भीर नही दिखती। इतने महाघोटाले होने अपने एक मन्त्री और एक वरिष्ठ नेता की जेल के बाद भी क्यों टालमटोल का रवैया है। इसका जवाब यदि आज नहीं दिया गया तो कल जनता स्वयं जवाब दे देगी।
देश का कानून भी इतना लचीला है कि भ्रष्टाचार का आरोपी आसानी से निकल छूटता है। भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1988 के अन्तर्गत अपराध करने वाला व्यक्ति दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के अध्याय 21 ए में परिभाषित प्ली बारगेनिंग प्रक्रिया का लाभ प्राप्त कर सकता है। इसके तहत आरोपी यदि अपना अपराध स्वीकार कर ले तो उसे कम से कम सजा पर छुडाया जा सकता है। इस तरह के कानून आरोपियों को निकल छूटने में मदद करते है इस तरह के कानून को और सख्त बनाने की जरुरत है। बिहार के दूसरी बार चुने गए मुख्मन्त्री नितीश कुमार इस दिशा में कुछ करने में सफल रहे है। उन्होंने चुनाव से पूर्व बिहार की जनता से वादा किया था कि भ्रष्ट अफसरों की अचल सम्पत्ति जब्त कर वहां स्कूल और अस्पताल खोल दिए जाएंगे। नितीश ने ना सिर्फ वादा किया बल्कि उसे पूरा भी कर दिखाया। ऐसा साहस केन्द्र सरकार को भी दिखाना होगा। बाबा रामदेव देश के बाहर गए काले धन को वापस लाने की बात कर रहे लेकिन उससे भी बडा सवाल है कि देश में ही मौजूद काले धन की पडताल कौन करेगा। बहस बहुत बडी है और सिर्फ बहस मुबाहिसे से कोई हल नहीं निकलने वाला इसके लिए ठोस पहल और सख्ती की जरुरत है। बेहतर लोकतान्त्रिक व्यव्स्था के लिए भ्रष्टाचार को खत्म करना बहुत आवश्यक है। यह कैसे खत्म होगा यह आज का सबसे बडा यक्ष प्रश्न है।
Very True. I am not able to recall if any high profile person has been punished for a financial crime in India. Enlighten me if there is one !!!
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