बुधवार, 9 जून 2010
किताबें ही किताबें
हैदराबाद में हर रविवार जब बड़े बड़े मॉल और दुकाने बन्द होती है तब उनके बाहर लाखों किताबों का बाजार लगता है। कोटी से एबिड्स ओर कोटी से सुल्तान बाजार की ओर के रास्तों पर हर विषय और हर भाषा की पुस्तकें कोडि़यों के मोल बिकती है। इनमें अधिकतर वे पुस्तकें होती है जो किसी को किसी ने उपहार में दी होती है ओर वो उपहार पाने वाला उसे रद्दी में बेच देता है। 200 से 500 तक की किताब आपको 10 से 20 रुपए में मिल जाएगी। आश्चर्य तो यह कि इनको बेचने वालों में कई तो पढ़ना लिखना भी नहीं जानते। कभी हैदराबाद जाने का अवसर मिले तो रविवार को इस खुले पुस्तक मेले का नजारा जरुर कीजिए। हो सकता है कि आपको वह बहुमूल्य पुस्तक इसी बाजार में मिल जाए जिसे आप देश के बड़े बड़े पुस्तक मेलों में खोज आए हों।
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बहुत अच्छी जानकारी दी है | ऐसा ही एक बाजार सूरत शहर में भी लगता है चोक से स्टेशन जाने वाली सडक पर | वैसा ही नजारा है जैसा हैदराबाद में है | केवल जगह ही बदलती है |
जवाब देंहटाएंसचमुच, किताबों के इस भंडार में मैं भी खो गया, मगर विज्ञान की किताब में साहित्य की किताबें कहां उपलब्ध हो पाती हैं.
जवाब देंहटाएंji han sir....is dusri bhasa ke rajya me yadi hindi ki achi se achi kitaben pani hain to ye bazar sabse achhe pustak mele hai..hamne bhi kai kitaben kharidi hain....sath me wo shubhkamnayen bhi jinki kimat kitabe raddi me bechne walon ki nazron me nahi thi...ye kitaben khareed ke aisa laga ki ye meri sabse achhi dost mujhe duaen de rahi hai....
जवाब देंहटाएंबस एक ही ग़म है कि हिन्दी का स्तरीय और लोकप्रिय साहित्य खोजने वालों को इस बाज़ार में निराशा हाथ लगती है. लेकिन अहिन्दी भाषी राज्य में हिन्दी ने वजूद बचाए और बनाए रखा है, यही अहम् है..हाँ अगर अंग्रेज़ी,फैशन,मेनेजमेंट और तकनीकी विषयों के प्रेमी हों तो विकल्प इफराद हैं..
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